राम यात्रा - भाग 03
यात्रा का ना आदि...न अंत..यात्रा होती अनंत राम पुष्पक विमान की उस खिड़की से बाहर झांक रहे थे जिसके पास लक्ष्मण पहले बैठे हुए थे और अब लगभग मूर्च्छित पड़े थे. पुष्पक में अजीब तरह की अफ़रा तफ़री मची थी क्योकि किष्किंधा में इस विमान को उतारा जाना था. पुष्पक विमान दल के कर्मियों को हमेशा ही उड़ते समय और नीचे उतरते समय खासा सावधानी बरतने की ज़रूरत पड़ती थी. पुष्पक के सिर पर चलता विशालकाय पंखा इसे उड़ाने में मदद करता था लेकिन इसे नीचे उतारने में कठिनाई भी देता था. विमानदल के लिए दूसरा मुश्किल काम होता इसके चारो पायों के पास लगे दिशा-गमन पंखो को सावधानी से जमीन पर लगने से बचाना. पुष्पक के चारों पाँव एक साथ ज़मीन पर टकराने चाहिए. थोड़ा सा भी टेढ़ा हो जाने पर इसके पांव से कुछ उपर घूमते पंखे ज़मीन में टकरा सकते थे और दुर्घटना घट सकती थी. ये एक ऐसी क्षति होती जिसे ठीक नहीं किया जा सकता था. इसलिए पुष्पक को नीचे उतारना हमेशा उपर चढ़ाने से मुश्किल काम होता. रावण की लंका में धूम्रपाद नाम का राक्षस इस प्रक्रिया को बखूबी समझता था. उसने खुद मेघनाद के साथ पुष्पक को उड़ाने का प्रशि